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भारत में अल्ज़ाइमर और डिमेंशिया
भारत में 40 लाख से अधिक लोगों को किसी न किसी प्रकार का डिमेंशिया है। विश्व भर में कम-से-कम 4 करोड़ 40 लाख लोग डिमेंशिया से ग्रस्त हैं, जो इस रोग को एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट बनाते हैं जिसे संबोधित किया जाना ज़रूरी है।
किसी व्यक्ति में अल्ज़ाइमर होने का कोई निदान रोगग्रस्त व्यक्ति के, बल्कि उसके परिवार और दोस्तों के जीवन को भी, बदल कर रख देता है, किंतु जानकारियाँ और सहायता उपलब्ध हैं। किसी को भी अल्ज़ाइमर रोग या किसी और डिमेंशिया का अकेले ही सामना नहीं करना पड़ता है।
अल्ज़ाइमर और डिमेंशिया के बारे में
अल्ज़ाइमर रोग सबसे आम प्रकार का डिमेंशिया है, जो कि मस्तिष्क के यथोचित रूप में काम न कर पाने की स्थिति में होने वाली परिस्थितियों के लिए समग्रता में इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है। अल्ज़ाइमर याददाश्त, सोचने और व्यवहार संबंधी समस्याएँ पैदा करता है। आरंभिक चरण में, डिमेंशिया के लक्षण बहुत ही कम हो सकते हैं, लेकिन जैसे-जैसे रोग मस्तिष्क को अधिक नुकसान पहुँचाता है, लक्षण बिगड़ने लगते हैं। रोग के बढ़ने की दर हरेक व्यक्ति में अलग होती है, परंतु व्यक्ति लक्षण शुरू होने के बाद से औसतन आठ वर्ष तक जीवित रहता है।
हालाँकि अल्ज़ाइमर रोग को बढ़ने से रोकने के कोई उपचार फिलहाल मौज़ूद नहीं हैं, परंतु ऐसी दवाएँ हैं जिससे डिमेंशिया के लक्षणों का इलाज किया जा सकता है। पिछले तीन दशकों में डिमेंशिया अनुसंधान ने इस बारे में काफी जानकारी उपलब्ध कराई है कि कैसे अल्ज़ाइमर रोग मस्तिष्क को प्रभावित करता है। वर्तमान में, अनुसंधानकर्ता अधिक प्रभावी उपचारों और चिकित्सा और साथ ही अल्ज़ाइमर की रोकथाम तथा मस्तिष्क स्वास्थ्य में सुधार के तरीकों को खोजने में लगे हैं।
Learn more about the अल्ज़ाइमर की बुनियादी बातें और अल्ज़ाइमर की अवस्थाएँ के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करें।.
स्मृतिलोप और अल्ज़ाइमर के अन्य लक्षण
याद करने में दिक्कत—विशेष रूप से हाल ही की जानकारियों को याद करने में समस्या—अल्ज़ाइमर रोग का प्राय: पहला लक्षण है।
जैसे-जैसे हम उम्रदराज होते हैं, हमारे मस्तिष्क में भी बदलाव होते हैं, और हमें कई बातों को याद करने में कभी कभी समस्याएँ आ सकती हैं। परंतु अल्ज़ाइमर रोग और अन्य प्रकार के डिमेंशिया में स्मृतिलोप तथा अन्य लक्षण उत्पन्न होते हैं जो दैनंदिन जीवन में कठिनाई पैदा करने के लिए पर्याप्त रूप से गंभीर होते हैं। ये लक्षण उम्रदराज होने के नैसर्गिक लक्षण नहीं होते हैं।
सभी प्रकार के स्मृतिलोप का कारण अ ल्ज़ाइमर ही नहीं होता है।
यदि आप या आपका कोई परिचित याददाश्त या डिमेंशिया के अन्य लक्षणों की समस्याओं का अनुभव कर रहा हो तो चिकित्सक को दिखाएँ। इन लक्षणों की कुछ वजहें, जैसे कि दवाओं के दुष्प्रभाव या विटामिन की कमी, ठीक हो सकती हैं।
स्मृतिलोप के अलावा अल्ज़ाइमर के लक्षणों में शामिल हैं:
- किसी समय आसान व सरल लगने वाले कार्यों को पूरा करने में मुश्किल होना।
- समस्याओं को हल करने में कठिनाई आना।
- मनोदशा और व्यक्तित्व में बदलाव; दोस्तों एवं परिवार से अपने को अलग रखने की प्रवृत्ति।
- संवाद-संप्रेषण में परेशानी, चाहे लिखित रूप में हो या बोलकर।
- जगहों, लोगों और घटनाओं के बारे में विभ्रम पैदा होना।
- देखने संबंधी बदलाव, जैसे कि तस्वीरों या छवियों को समझने में दिक्कत।
अल्ज़ाइमर और लगातार बढ़ने वाले अन्य डिमेंशिया के लक्षणों को, इन परिवर्तनों का व्यक्ति द्वारा अनुभव किए जाने से पहले ही दोस्त और परिवारजन देख सकते हैं। यदि आप या आपका कोई परिचित डिमेंशिया के संभावित लक्षणों का अनुभव कर रहा हो तो यह महत्वपूर्ण है कि कारण का पता लगाने के लिए चिकित्सीय मूल्यांकन करवाएँ।
आयु से जुड़े याददाश्त एवं मस्तिष्क संबंधी सामान्य बदलावों तथा अल्ज़ाइमर के लक्षणों के बीच अंतर के बारे में और अधिक जानने के लिए, हमारे अल्ज़ाइमर के 10 शुरुआती संकेत एवं लक्षण जानें पृष्ठ पर जाएँ।
अल्ज़ाइमर और मस्तिष्क
मस्तिष्क के एक हिस्से हिप्पोकैंपस, जिसका संबंध सीखने से होता है, में मस्तिष्क कोशिकाएँ, अक्सर अल्ज़ाइमर द्वारा सबसे पहले क्षतिग्रस्त होती हैं। स्मृतिलोप की यही वजह होती है, विशेषतौर पर हाल ही में जानी गई जानकारियों को याद करने में कठिनाई, अक्सर रोग का शुरुआती लक्षण होती है।
अल्ज़ाइमर किस प्रकार मस्तिष्क स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, यह जानने के लिए हमारे इंटरेक्टिव ब्रेन टूर पर जाएँ।
इंटरेक्टिव ब्रेन टूरअल्ज़ाइमर के जोखिम कारक
यद्यपि हम अभी तक उन सभी वजहों को नहीं जान पाए हैं कि क्यों कुछ लोगों में अल्ज़ाइमर होता है और अन्य में नहीं, फिर भी अनुसंधानों ने हमें इस बारे में बेहतर समझ प्रदान की है कि कौन-से कारक किसी व्यक्ति को उच्चतर जोखिम पर रखते हैं।
- आयु।
अल्ज़ाइमर रोग होने के लिए आयु का बढ़ना सबसे बड़ा जोखिम कारक है। अल्ज़ाइमर रोग से ग्रस्त अधिकांश लोग 65 या इससे अधिक उम्र के होते हैं।
यद्यपि बहुत कम आम, कम आयु में होने वाला अल्ज़ाइमर (इसे अर्ली-ऑनसेट अल्ज़ाइमर भी कहा जाता है), 65 वर्ष से कम आयु के लोगों को प्रभावित करता है। यह अनुमान है कि अल्ज़ाइमर रोगियों में से 5 प्रतिशत तक ऐसे लोगों को कम आयु में होने वाला अल्ज़ाइमर होता है। कम आयु में होने वाले अल्ज़ाइमर का अक्सर ग़लत निदान होता है। - अल्ज़ाइमर वाले पारिवारिक सदस्य।
यदि आपके माता-पिता या भाई-बहनों को अल्ज़ाइमर होता है तो अन्य व्यक्तियों, जिनके निकटतम रक्त-संबंधियों को अल्ज़ाइमर नहीं है, की तुलना में आपमें यह रोग होने की संभावना अधिक होती है। वैज्ञानिक अभी तक इस बात को पूरी तरह नहीं समझ पाए हैं कि परिवारों में अल्ज़ाइमर चलने का क्या कारण है, किंतु आनुवंशिकी, पर्यावरणीय कारक और जीवन शैली की एक भूमिका हो सकती है।
- आनुवंशिकी।
अनुसंधानकर्ताओं ने ऐसे विभिन्न प्रकार के जीन परिवर्ती रूपों की पहचान की है जो अल्ज़ाइमर रोग विकसित होने की संभावना बढ़ाते हैं। APOE-e4 जीन अल्ज़ाइमर से जुड़ा सबसे आम जोखिम जीन है; लगभग एक-चौथाई मामलों में इसकी भूमिका होने का अनुमान है।
निर्धारक जीन जोखिम जीनों से इस रूप में भिन्न होते हैं कि वे पक्के तौर पर रोग के विकसित होने की वजह बनते हैं।
अल्ज़ाइमर की एकमात्र ज्ञात वजह निर्धारक जीन को विरासत में प्राप्त करना है। निर्धारक जीन द्वारा होने वाला अल्ज़ाइमर एक विरल घटना है और अल्ज़ाइमर के 1 प्रतिशत से भी कम मामलों में इसके होने की संभावना होती है। जब निर्धारक जीन के कारण अल्ज़ाइमर होता है, तो इसे “ऑटोसोमल डोमिनेंट अल्ज़ाइमर डिज़ीज (ADAD)” कहते हैं। - हल्की संज्ञानात्मक क्षति (एमसीआई)।
एमसीआई के लक्षणों में सोचने की क्षमता में बदलाव शामिल हैं, किंतु ये लक्षण दैनंदिन जीवन में हस्तक्षेप नहीं करते हैं और उतने गंभीर नहीं होते हैं, जितने अल्ज़ाइमर या अन्य प्रगामी डिमेंशिया के लक्षण होते हैं। एमसीआई होने से, विशेषतौर पर याददाश्त समस्या संबंधी एमसीआई की वजह से, अल्ज़ाइमर और अन्य डिमेंशिया के विकसित होने का जोखिम बढ़ जाता है। हालाँकि, एमसीआई हमेशा ही नहीं बढ़ता है। कुछ मामलों में, यह कम हो जाता है या फिर स्थिर बना रहता है।
- हृदवाहिनी रोग।
अनुसंधानों से पता चलता है कि मस्तिष्क स्वास्थ्य का हृदय एवं रक्त वाहिनी की तंदुरुस्ती से निकट का संबंध होता है। मस्तिष्क को सामान्य ढंग से काम करने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन और पोषक तत्व रक्त से प्राप्त होते हैं और हृदय ही मस्तिष्क तक रक्त भेजने के लिए जिम्मेदार है। इसीलिए, हृदवाहिनी रोग की जो वजहें होती हैं, वही कारक अल्ज़ाइमर और अन्य डिमेंशिया विकसित होने के उच्च जोखिम से जुड़े हो सकते हैं और इनमें धूम्रपान, मोटापा, मधुमेह एवं उच्च कोलेस्ट्रॉल तथा अधेड़ उम्र में उच्च रक्तचाप शामिल हैं।
- शिक्षा और अल्ज़ाइमर।
अध्ययनों ने औपचारिक शिक्षा में गुजारे गए कम वर्षों को अल्ज़ाइमर एवं अन्य डिमेंशिया के बढ़े हुए जोखिम के साथ जोड़ा है। इस संबंध का कोई स्पष्ट कारण नहीं है, किंतु कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि औपचारिक शिक्षा में गुजारे गए अधिक वर्ष न्यूरॉन्स के बीच संपर्कों को बढ़ाने में सहायता कर सकते हैं, जिससे अल्ज़ाइमर एवं अन्य डिमेंशिया संबंधी बदलाव प्रकट होने की स्थिति में मस्तिष्क न्यूरॉन से न्यूरॉन के बीच संप्रेषण के वैकल्पिक मार्गों का प्रयोग करने लगता है।
- अभिघातज मस्तिष्क चोट। अल्ज़ाइमर रोग और अन्य डिमेंशिया का जोखिम तब बढ़ जाता है यदि मस्तिष्क में कोई सामान्य या गंभीर आघात वाली चोट लगी हो जैसे कि सिर की टक्कर या कपाल की चोट जिसकी वजह से 30 मिनट से अधिक समय तक बेहोशी या याददाश्त खो देने जैसी स्थिति रही हो। अभिघातज मस्तिष्क चोटों में से 50 प्रतिशत का कारण मोटर वाहन दुर्घटनाएँ होती हैं। एथलीटों या युद्ध में संलग्न लोगों, जिनके मस्तिष्क में बार-बार चोट लगती है, में भी डिमेंशिया विकसित होने या सोचने की क्षमता में दुर्बलता पैदा होने का अधिक जोखिम रहता है।
अल्ज़ाइमर का निदान करना
ऐसी कोई सरल जाँच उपलब्ध नहीं है जिससे हमें पता लगे कि क्या किसी व्यक्ति को अल्ज़ाइमर है। रोग के निदान के लिए एक समग्र चिकित्सीय मूल्यांकन की आवश्यकता होती है, जिनमें शामिल हो सकते हैं:
क्या अल्ज़ाइमर के लिए
कोई परीक्षण होता है?अल्ज़ाइमर पता लगाने का कोई आसान तरीका नहीं है। निदान के लिए एक संपूर्ण चिकित्सा जाँच की आवश्यकता होती है। लक्षणों की वजहें जानने के लिए रक्त परीक्षण, मानसिक अवस्था परीक्षण और ब्रेन इमेजिंग का उपयोग किया जा सकता है।
- आपके परिवार का चिकित्सीय इतिहास
- न्यूरोलॉजिकल परीक्षण
- याददाश्त और सोचने के मूल्यांकन हेतु संज्ञानात्मक परीक्षण
- रक्त परीक्षण (लक्षणों की अन्य वजहों की संभावना को दूर करने के लिए)
- ब्रेन इमेजिंग
हालांकि चिकित्सक यह तो पता लगा सकते हैं कि क्या किसी व्यक्ति को डिमेंशिया है, किंतु किस प्रकार का डिमेंशिया है यह पता लगाना मुश्किल हो सकता है। कम आयु में होने वाले अल्ज़ाइमर में लक्षणों का ग़लत निदान अधिक आम है।
रोग प्रक्रिया की शुरुआत में ही सटीक निदान प्राप्त करना महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे:
- उपलब्ध उपचारों का लाभ मिलने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं, जिससे जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है
- सहायक सेवाओं को प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होता है
- चिकित्सीय परीक्षणों यानी क्लीनिकल ट्रायल और चिकित्सीय अध्ययनों में भागीदारी का अवसर प्राप्त हो सकता है
- भावी देखभाल और जीवन जीने संबंधी व्यवस्थाओं के बारे में अपनी इच्छाएँ व्यक्त करने का अवसर मिलता है
- समय रहते व्यक्ति अपनी वित्तीय एवं कानूनी योजनाएँ बना सकता है
अल्ज़ाइमर उपचार एवं सहायता
यद्यपि अल्ज़ाइमर रोग के कारण मस्तिष्क की क्षति को रोकने या धीमा करने का फिलहाल कोई उपचार उपलब्ध नहीं है, परंतु ऐसी अनेक दवाएँ हैं जो कुछ लोगों में डिमेंशिया के लक्षणों में अस्थायी तौर पर सुधार लाने में सहायता कर सकती हैं। ये दवाएँ मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटरों में बढ़ोत्तरी करने के माध्यम से काम करती हैं।
अनुसंधानकर्ता अल्ज़ाइमर एवं अन्य प्रगामी डिमेंशिया के बेहतर उपचार के तरीकों को खोजने में लगे हुए हैं। वर्तमान में, दर्जनों थैरेपी और फार्माकोलॉजिक उपचार जारी हैं जो अल्ज़ाइमर से संबद्ध मस्तिष्क कोशिकाओं की मृत्यु को रोकने पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं।
इसके अतिरिक्त, मददगार व्यवस्थाओं के होने और गैर-फार्माकोलॉजिक व्यवहार-संबंधी हस्तक्षेपों को अमल में लाने पर डिमेंशिया वाले लोगों और उनके देखभालकर्ताओं एवं परिवारों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है। इनमें शामिल हैं:
- सह-विद्यमान चिकित्सीय स्थितियों का उपचार
- स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के बीच देखभाल का समन्वय
- ऐसी गतिविधियों में भागीदारी, जिनसे मनोदशा में सुधार आता हो
- व्यवहार संबंधी हस्तक्षेप (आक्रामकता, नींद संबंधी मुद्दे और उत्तेजना जैसे सामान्य बदलावों में मदद करना)
- रोग के बारे में शिक्षा
- मदद के लिए एक देखभाल टीम गठित करना
देखभाल करना
अल्ज़ाइमर रोग या अन्य डिमेंशिया वाले किसी व्यक्ति की देखभाल करना लाभदायक और चुनौतीपूर्ण दोनों हो सकता है। डिमेंशिया की शुरुआती अवस्थाओं में, व्यक्ति स्वतंत्र रह सकता है और उसे बहुत कम देखभाल की ज़रूरत होती है। लेकिन जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, बहुत अधिक देखभाल की ज़रूरत होती है। आखिरकार एक ऐसी स्थिति आती है जब चौबीसों घंटे सहायता की दरकार रहती है।
हम अक्सर देखभाल करने वालों और परिवार के सदस्यों से सुनते हैं कि अल्ज़ाइमर के सर्वाधिक निराशाजनक पहलुओं में से एक इसके कारण होने वाले स्वभाव या व्यवहार में बदलाव है। कई संसाधन उपलब्ध हैं जिनसे देखभालकर्ताओं को यह जानने में सहायता मिल सकती है कि रोग की शुरुआती, बीच की और बाद की अवस्थाओं में क्या अपेक्षा करें और कैसे अनुकूलन करें।
अल्ज़ाइमर से ग्रस्त किसी व्यक्ति की देखभाल करने के बारे में अधिक जानें
हम किस प्रकार मदद करते हैं
विश्व का ऐसा अग्रणी स्वैच्छिक स्वास्थ्य संगठन होने के नाते जो अल्ज़ाइमर देखभाल, मदद एवं अनुसंधान के प्रति समर्पित है, Alzheimer’s Association का प्रयास रहता है कि अल्ज़ाइमर रोग एवं अन्य डिमेंशिया रोगों से पीड़ित सभी लोगों के लिए जीवन को बेहतर बनाया जाए। हम महत्वपूर्ण अनुसंधान को वित्तपोषण प्रदान करते हैं; शिक्षण व संसाधन उपलब्ध कराते हैं; जागरूकता फैलाते हैं; और अल्ज़ाइमर रहित विश्व के अपने विज़न की दिशा में काम करने के लिए सरकारी, निजी एवं गैर-लाभकारी संस्थाओं के साथ भागीदारी का समर्थन करते हैं।